कुण्डली दोष क्या होता है, इसके निवारण के लिए क्या उपाय हैं

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कुण्डली में जब चंद्र ग्रह के साथ कोई भी पाप ग्रह, जैसे कि राहु या केतु लग्न स्थान पर होते हैं और उस स्थिति में चन्

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुण्डली में ग्रहों की स्थिति हमारे जीवन में सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव डालती है और उसमें विभिन्न प्रकार के दोष एवं योग दृष्टिगोचर होते हैं। कुंडली में जब ग्रहों की स्थिति विपरीत होती है तो कुंडली दोष बनता है तथा कुंडली में व्याप्त अशुभ योगों के कारण जातक को दु:ख झेलना पड़ता है, यद्यपि इस बात सुनिश्चितता केवल कुंडली देखने के बाद ही तय होती है कि कुंडली में दोष है या नहीं, यदि है तो इसका निवारण किस प्रकार से किया जा सकता है। 

कुण्डली दोष के प्रकार 

कुंडली दोष कई प्रकार के होते हैं जिसमें- 

चांडाल दोष- जातक की कुंडली में यदि किसी भी स्थान में राहु एवं गुरू की युति होती है, तो चांडाल दोष बनता है। जिसके कारण व्यक्ति नास्तिक, पाखंडी, दरिद्र बनता है तथा वह सदैव मानसिक तनाव में रहता है।  लेकिन यदि यह योग 'केतु एवं गुरु' के कारण बन रहा है तो व्यक्ति उपासक हो जाता है, यद्यपि उसके मन में सदैव शंकाएं उत्पन्न होती हैं और किसी पर भी विश्वास नहीं करता है। 

निवारण- जातक पीली वस्तुओं का दान करें, मस्तक पर चंदन का तिलक लगाये अथवा गुरुवार का व्रत रखें। 

अल्पायु योग- कुण्डली में जब चंद्र ग्रह के साथ कोई भी पाप ग्रह, जैसे कि राहु या केतु लग्न स्थान पर होते हैं और उस स्थिति में चन्द्रग्रह शक्तिहीन हो जाता है, तो यह योग अल्पायु योग कहलाते हैं। इस दोष के कारण जातक के जीवन में सदैव संकट के बादल छाए रहते हैं। 

निवारण- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और दिन में एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। 

ग्रहण योग- यह दो प्रकार के होते हैं। पहला है चन्द्र ग्रहण, यह तब लगता है जब चन्द्रमा राहु या केतु के साथ विद्यमान होते हैं। दूसरा है सूर्य ग्रहण, यह तब होता है जब सूर्य के साथ राहु या केतु ग्रह विद्यमान होते हैं। चन्द्र ग्रहण दोष के प्रभाव से जातक को मानसिक पीड़ा होती है और सूर्य ग्रहण के प्रभाव से उसका जीवन अस्थिर हो जाता है।  

निवारण- श्वेत वस्तुओं का दान करने से चंद्रग्रहण योग की पारिसमाप्ति होती है। सूर्य ग्रहण योग की शांति के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें और प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें। 

 

वैधव्य योग- यह योग तब बनता है, जब जातक की कुण्डली के सप्तम भाव का स्वामी शनि या मंगल होता है और वह तृतीय, सप्तम और दसवें भाव में दृष्टि डाल रहा हो। इस योग के कारण पति को जीवन में मृत्यु की संभावना बनी रहती है। 

निवारण- मंगला गौरी व्रत और पूजन करें। विवाह से पूर्व कुंभ विवाह अवश्य करना चाहिए। 

दारिद्रय योग- यदि जातक की कुंडली के ग्याहवें घर का स्वामी षष्ठम, अष्टम या बारहवें घर में विराजमान हो तो यह दारिद्रय योग के संकेत हैंइस योग के कारण जातक की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती हैजीवन में धन संबन्धी समस्याएं बनी रहती हैं। 

निवारण- दारिद्रय योग केक निवारण के लिए अष्ट लक्ष्मी स्तोत्र या श्रीसूक्त का पाठ करें या फिर शुक्रवार के दिन व्रत रखें और माता लक्ष्मी की पूजा करें। 

षड्यंत्र योग- जब जातक की कुंडली में लग्न का स्वामी आठवें घर में विराजमान हो, लेकिन उसके साथ अशुभ ग्रह बैठा हो तब कुंडली में षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण वह जातक अपने करीबी लोगों के द्वारा षड्यंत्रा का शिकार होता है।  साथ ही धन, संपत्ति और मान सम्मान का नुकसान उठाना पड़ता है।  

निवारण- सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा एवं अराधना करें। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें  

मांगलिक दोष (कुज योग)- जातक की कुंडली में मांगलिक दोष तब बनता है जब उसकी कुंडली में मंगल ग्रह लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या फिर द्वादश भाव में विद्यमान होता है। इस दोष का सबसे बड़ा लक्षण वैवाहिक जीवन में देखने को मिलता है।  

निवारण- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें, पीपल और बट वृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। साथ ही मंगल ग्रह की शांति के लिए पूजा करें।  

केमद्रुम योग- केमद्रुम योग तब बनता है, जब जातक की कुंडली के द्वितीय या द्वादश भाव में चन्द्रमा विद्यमान हो तथा उसके आस पास के भाव में कोई भी ऐसा ग्रह ना हो। इस दोष के कारण जीवन में आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगते हैं और वैवाहिक जीवन कष्टप्रद हो जाता है।  

निवारण इस दोष के निवारण के लिए शुक्रवार के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना अवश्य करें। भगवान को मिश्री का भोग एवं लाल पुष्प अर्पित करें और निर्धन को श्वेत वस्तुएं दान करें।  

अंगारक योग- जब जातक की कुंडली में मंगल ग्रह का राहु या केतु में से किसी से साथ दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए, तो यह अंगारक योग के संकेत है। इस दोष के प्रभाव से जातक का स्वभाव आक्रमक और हिंसक हो जाता है और कुटुम्बजनों के साथ परस्पर अच्छे संबंध स्थापित नहीं होते।  

निवारण- इस दोष के निवारण के लिए प्रतिदिन हनुमान जी की उपासना करें और संभव हो तो मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करें। 

विष योग- जातक की कुंडली में विष योग तब बनता है जब शनि की दृष्चि चंद्र पर होती है। इस दोष के कारण जातक को जीवनभर विषम परिस्थियों का सामना करना पड़ता है।  

निवारण- इस दोष के निवारण के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और सोमवार को भगवान शिव की अराधना करें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। 

कुण्डली दोष निवारण पूजा के लाभ 

  • वैदिक विधि द्वारा कुण्डली दोष निवारण पूजा करने से कुंडली के अशुभ ग्रह शांत होते हैं।   
  • निवारण पूजा के पश्चात जातक के व्यापार एवं कार्य में सफलता प्राप्त होती है।  
  • कुंडली दोष के कारण जीवन में आ रही समस्त बाधाएं दूर होती है।  
  • वैवाहिक जीवन में शांति तथा विवाह में विलंब समाप्त होता है।  
  • धन, धान्य की प्राप्ति होती है। 

तो, इस प्रकार से कुंडली दोष का निवारण किया जाता है। लेकिन यदि इस बात का बोध केवल कुंडली देखकर ही बताया जा सकता है कि जातक की कुंडली में किस प्रकार का दोष बन रहा है। यद्यपि अच्छे परिणामों के लिए वैदिक विधि द्वारा ही पूजा संपन्न करवानी चाहिए।  

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